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Sanskrit Domain Test - 8
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Sanskrit Domain Test - 8
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  • Question 1/10
    5 / -1

    निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,

    लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्

    इत्यत्र कि छन्दः प्रयुक्तम् ?

    Solutions

    अनुवाद - निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्। यहाँ कौन सा छन्द प्रयुक्त है?

    स्पष्टीकरण  -  

    निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,

    लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।

    अद्यैव वा मरणस्तु युगान्तरे वा

    न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पथं न धीराः ।।

    • अनुवाद - नीति में कुशल मनुष्य चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, धन उसके पास रहे या चला जाए, उसकी मृत्यु आज हो या युगों के बाद परन्तु धैर्यवान् मानव  कभी भी अपने न्याय पथ से विचलित नहीं होता है।

    Important Points

     छन्द लक्षण - उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।

    • अर्थ - वसन्ततिलका छन्द में 14 वर्ण होते हैं।
    • जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः तगण भगण, जगण और दो गुरु वर्ण होते हैं।

     

    अतः उपर्युक्त छन्द में वसन्ततिलका छन्द का लक्षण घटित होने के कारण उपर्युक्त श्लोक वसन्ततिलका छन्द में है।

  • Question 2/10
    5 / -1

    अनुष्टुप् छन्दसि प्रत्येकस्मिन् चरणे षष्ठवर्णः भवति -
    Solutions

    प्रश्न अनुवाद- अनुष्टुप छंद के प्रत्येक चरण में छठा वर्ण होता है -

    स्पष्टीकरण- अनुष्टुप छंद के प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते हैं। जिनमें केवल 5, 6, 7 इन तीनों वर्णों पर ही नियम लगता है। 

    5वां वर्ण चारों चरणों में लघु तथा 6ठां वर्ण गुरु होता है। सातवां वर्ण द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में लघु तथा अन्य चरण में गुरु होता है। 

    अतः स्पष्ट है कि अनुष्टुप छंद के प्रत्येक चरण में 6ठां वर्ण गुरु होता है।

  • Question 3/10
    5 / -1

    अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।

    वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी चविद्या षड् जीवलोकेषु सुकानि राजन्।।

    अस्मिन् श्लोके प्रयुक्ताछन्दसः नाम किम्?

    Solutions
    प्रश्न अनुवाद - 
    अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
    वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी चविद्या षड् जीवलोकेषु सुकानि राजन्।।
    इस श्लोक में प्रयुक्त छन्द का नाम क्या है ?
    स्पष्टीकरण -
    प्रस्तुत श्लोक में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है।
    उपजाति छन्द -
    • जहाँ इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का मिश्रण होता है, वहाँ उपजाति छन्द होता है।
    इन्द्रवज्रा - 
    • लक्षण - "स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः”
    • तगण, तागण, जगण, गुरु, गुरु  होने पर इन्द्रवज्रा छन्द होता है।
    उपेन्द्रवज्रा -
    • लक्षण - "उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ”
    • जगण, तगण, जगण, 2 गुरु होने पर उपेन्द्रवज्रा छन्द होता है।

    उदाहरण - 
     ऽ ऽ । ऽ  ऽ। । ऽ ।  ऽ  ऽ  
    अर्थागमो नित्यमरोगिता च,   (इन्द्रवज्रा)
     । ऽ  ।  ऽ  ऽ  । । ऽ । ऽ  ऽ 
    प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च। (उपेन्द्रवज्रा)
    ऽ  ऽ । ऽ ऽ   । ।  ऽ । ऽ ऽ 
    वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी चविद्या, (इन्द्रवज्रा)
     ।    ऽ । ऽ ऽ ।  । ऽ  ।  ऽ ऽ 
    षड् जीवलोकेषु सुकानि राजन्।(उपेन्द्रवज्रा)
    अत: स्पष्ट है कि प्रयुक्त श्लोक में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है।

    Key Points

    अन्य विकल्प -

    1.इन्द्रवज्रा - 

    • लक्षण - "स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः”
    • तगण, तागण, जगण, गुरु, गुरु  होने पर इन्द्रवज्रा छन्द होता है।

    2.उपेन्द्रवज्रा -

    • लक्षण - "उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ”
    • जगण, तगण, जगण, 2 गुरु होने पर उपेन्द्रवज्रा छन्द होता है।

    3.रथोद्धता छन्द -

    • ग्यारह अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसका पहला, तीसरा, सातवाँ, नवाँ, और ग्यारहवाँ वर्ण गुरु और बाकी वर्ण लघु होते है
    • अर्थात् इसके प्रत्येक चरण में रगण, नगण, रगण, लघु, गुरु होता है 
  • Question 4/10
    5 / -1

    वंशस्थ छन्दसि प्रत्येकस्मिन् चरणे वर्णाः भवन्ति-
    Solutions

    प्रश्न अनुवाद- वंशस्थ छंद में प्रत्येक चरण में वर्ण होते हैं-

    स्पष्टीकरण- वंशस्थ छंद एक वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण या पाद होते हैं।

    इसमें प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं। जो क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण के क्रम में होते हैं।

    उदाहरण - कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। 

    अतः स्पष्ट है कि वंशस्थ छंद के प्रत्येक चरण में बारह (12) वर्ण होते हैं।

  • Question 5/10
    5 / -1

    "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वाम्" इत्यत्र छन्दः अस्ति-
    Solutions

    प्रश्न का हिंदी भाषांतर : "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वाम्" यहाँँ कौन सा छंद है?

    स्पष्टीकरण : 

    प्रस्तुत काव्यपंक्ति महाकवि कालिदास विरचित मेघदूतम् इस खंडकाव्य से संगृहीत है। संपूर्ण मेघदूतम् खंडकाव्य मंदाक्रांता इस छंद में विरचित है। अतः 'मन्दाक्रान्ता' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

    Important Points

    मंदाक्रांता छंद का लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्।

    • गण - म भ न त त ग ग
    • यति - अम्बुधि (४) , रस(६), नग(७)।
    • अक्षरसंख्या - १७

    Additional Information

    अन्य उदाहरण - 

    शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
    लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
    वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

  • Question 6/10
    5 / -1

    अधोनिर्दिष्ट 'पद्य' में छन्द का निर्देश करें

    खगा वासोपेताः सलिलमवगाहा मुनिजनः

    प्रदीप्तोऽग्निर्भाति प्रविचरति धूमो मुनिवनम्।

    परिभ्रष्टो दूराद् रविरपि च सङ्क्षिप्तकिरणो

    रथं व्यावत्‍र्यासौ प्रविशति शनैरस्तशिखरम।।

    Solutions
    प्रश्न अनुवाद -
    इस निर्देश 'पद्य' में छन्द का निर्देश करें -
    खगा वासोपेताः सलिलमवगाहा मुनिजनः
    प्रदीप्तोऽग्निर्भाति प्रविचरति धूमो मुनिवनम्।
    परिभ्रष्टो दूराद् रविरपि च सङ्क्षिप्तकिरणो
    रथं व्यावत्‍र्यासौ प्रविशति शनैरस्तशिखरम।।
    स्पष्टीकरण -
    • इस पद्य में शिखरिणी छन्द का प्रयोग है। 
    शिखरिणी छन्द -
    • यह सत्रह वर्णों का समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में सत्रह वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (17 x 4 - 68) अड़सठ वर्ण होते हैं। यह छन्द छन्दोजाति अत्यष्टि’ के अन्तर्गत आता है।

     conclusion

    • लक्षण - “रसैः रुद्वैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी”
    • इसके प्रत्येक चरण में यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), नगण (।।।), सगण (।।ऽ), भगण (ऽ।।), एक लघु और एक गुरु वर्ण होते है। इसमें रसैः - छः (रस छः होते हैं), रुद्र - ग्यारह (रुद्र ग्यारह होते हैं), छिन्ना - विभक्त हुई, अर्थात् छठे तथा ग्यारहवें वर्ण पर यति होती है। यमनसभलागः - क्रम से यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, लघु तथा गुरु होने पर शिखरिणी छन्द होता है।

    उदाहरण -
    ।  ऽ  ऽ ऽ ऽ ऽ  । । । । । ऽ ऽ । । । ऽ
    खगा वासोपेताः सलिलमवगाहा मुनिजनः
    ।  ऽ  ऽ  ऽ  ऽ ऽ । । ।। ।  ऽ ऽ । । । ऽ
    प्रदीप्तोऽग्निर्भाति प्रविचरति धूमो मुनिवनम्।
    । ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ  ।। ।  । ।  ऽ ऽ  । । । ऽ
    परिभ्रष्टो दूराद् रविरपि च सङ्क्षिप्तकिरणो
    । ऽ   ऽऽ   ऽ ऽ । ।  । ।  । ऽऽ । । । ऽ
    रथं व्यावत्‍र्यासौ प्रविशति शनैरस्तशिखरम्।।

    अत: 'शिखरिणी' विकल्प सही है। 

    Additional Information

    अन्य विकल्प -
    1.शार्दूलविक्रीडितम् -

    • उन्नीस वर्णों का यह समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में उन्नीस वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (19×4 - 76) छिहत्तर वर्ण होते है। 
    • लक्षण - ‘सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूल विक्रीडितम्'
    • इसके प्रत्येक चरण में मगण (ऽऽऽ), सगण (।।ऽ), जगण (।ऽ1), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ1) और एक गुरु वर्ण होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है।

    2.हरिणी -

    • लक्षण - 'रसयुगहयैर्न्सौ म्रौ स्लौ गो यदा हरिणी तदा'
    • अर्थात् नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
    • प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है।  

    3.मन्दाक्रान्ता -

    • लक्षण - 'मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्'
    • मन्दाक्रान्ता में प्रत्येक चरण में में 17 वर्ण होते है। 
    • क्रमशः मगण, भगण, भगण, नगण , तगण, तगण, दो गुरू होते है। 

     

  • Question 7/10
    5 / -1

    एकोनविंशतिः वर्णाः कस्मिन् छन्दसि भवन्ति?
    Solutions

    प्रश्न अनुवाद - 'एकोनविंशतिः वर्णाः' किस छन्द में होता है ?
    स्पष्टीकरण -

    • उन्नीस वर्ण (एकोनविंशतिः वर्णाः) शार्दूलविक्रीडितम् छन्द में होता है

    शार्दूलविक्रीडित छन्द -

    • उन्नीस वर्णों का यह समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में उन्नीस वर्ण होते है। 
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (19×4 = 76) छिहत्तर वर्ण होते है।
    • यह उन्नीस अक्षरों के पादवाली ‘अतिधृति’ जाति का छन्द है। शार्दूल ‘शेर’ को कहते है।

     conclusion

    लक्षण - ‘सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूल विक्रीडितम्'

    • अर्थात् इसके प्रत्येक चरण में मगण (ऽऽऽ), संगण (।।ऽ), जगण (।ऽ1), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ1) और एक गुरु वर्ण होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है।
    • सूर्य - बारह, सूर्य बारह राशियों पर विचरण करता है। अतः सूर्य बारह माने गये है। अश्वैः - सात, सूर्य के सात घोड़े माने गये है। अर्थात् जिस छन्द के चरण में बारहवें तथा सातवें वर्ण पर यति होती है। मसजस्तताः - क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, सगुरवः - गुरु से युक्त हों, अर्थात् छः गण एक गुरु, कुल उन्नीस वर्ण हों तो वह शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है।

     

    अत: 'शार्दूलविक्रीडितम्' विकल्प सही है।

    Additional Informationअन्य विकल्प -
    1.शिखरिणी -

    • यह सत्रह वर्णों का समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में सत्रह वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (17 x 4 = 68) अड़सठ वर्ण होते है।
    • लक्षण - “रसैः रुद्वैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी”
    • इसके प्रत्येक चरण में यगण (1ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), नगण (।।।), सगण (।।), भगण (ऽ।।), एक लघु और एक गुरु वर्ण होते है। इसमें रसैः - छः (रस छः होते है), रुद्र - ग्यारह (रुद्र ग्यारह होते है), छिन्ना - विभक्त हुई, अर्थात् छठे तथा ग्यारहवें वर्ण पर यति होती है। यमनसभलागः - क्रम से यगण, मगण, नगण, संगण, भगण, लघु तथा गुरु होने पर शिखरिणी छन्द होता है।

    2.वसन्ततिलका -

    • यह चौदह वर्णों के समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (14 x 4 = 56) छप्पन वर्ण होते है। इसमें चरण के अन्त में यति होती है।
    • लक्षण - “उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः”
    • वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश: तगण, भगाः, जगण, जगण और दो अक्षर गुरु होते हैं। इस प्रकार इसके प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते हैं। यति चरण में अन्त में होती है।

    3.उपजातिः -

    • जहाँ इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का मिश्रण होता है, वहाँ उपजाति छन्द होता है।
    • इन्द्रवज्रा का लक्षण - ‘स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः'
    • तौ - दो तगण, जगौ - जगण और गुरु, गः - गुरु मिलाकर अर्थात् तगण, तागण, जगण, गुरु, गुरु, - 11 वर्ण [चारों चरणों में 11 x 4 - 44 वर्ण होने पर इन्द्रवज्रा छन्द होता है। पाद के अन्त में यति होती है। यह त्रिष्टुप जाति (एक पाद में 11 वर्ण) का छन्द होता है। इसमें तीन गण तथा दो गुरु वर्ण होते है।
    • उपेन्द्रवज्रा का लक्षण - 'उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ'
    • जतजाः - जगण तगण जगण, ततः - तव, गौ = 2 गुरु मिलाकर एक पाद में कुल 11 वर्ण होते है। चारों पादों में, अर्थात् पूरे छन्द में [11 x 4 - 44] वर्ण होते है। यति पाद के अन्त में होती है।

    उपजाति का लक्षण -
    अनन्तरोदीरितलक्ष्म भाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः।
    इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम।।

    • अर्थात् समान जाति के दो छन्दों के चरणों का किसी छन्द में मेल होने पर वह उपजाति कहा जाता है। 
    • मुख्य रूप से उपजाति शब्द का प्रयोग इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के चरणों के मेल से बने हुए छन्द के लिए होता है।
    • दो चरण में इन्द्रवज्रा, दो चरण में उपेन्द्रवज्रा, एक चरण में इन्द्रवज्रा, तीन चरण में उपेन्द्रवज्रा इसी प्रकार चरणों की संख्या के भेद से इस छन्द के कुल चौदह भेद हो जाते है।

     

  • Question 8/10
    5 / -1

    मेघदूत काव्य किस छंद में है?
    Solutions
    स्पष्टीकरण - 
    • मेघदूत महाकवि कालिदास की अप्रतिम रचना है।
    • अकेली यह रचना ही उन्हें 'कविकुल गुरु' उपाधि से मण्डित करने में समर्थ है।
    • भाषा, भावप्रवणता, रस, छन्द और चरित्र-चित्रण समस्त द्दष्टियों से मेघदूत अनुपम खण्डकाव्य है।
    • गेय छन्द मन्दाक्रान्ता में उपनिबद्ध होने से इसको गीतिकाव्य भी कहा जाता है। 
    • महाकवि कालिदास द्वारा सम्पूर्ण मेघदूत में 'मन्दाक्रान्ता छन्द' का प्रयोग किया गया है। 

    Key Points'मन्दाक्रान्ता छन्द' -

    • लक्षण - "मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनौ तौ गयुग्मम्" 
    • इसके प्रत्येक चरण में क्रमश: मगण , भगण, नगण,
    • तगण, तगण तथा दो गुरु के क्रम से 17 -17 वर्ण होते है। 
  • Question 9/10
    5 / -1

    "विचिन्तयन्ती यमनन्यमानसा,

    तपोधनं वेत्सि न मामुपस्थितम्।"

    इति पद्यांशे छन्दः अस्ति-

    Solutions
    प्रश्न अनुवाद - 
    "विचिन्तयन्ती यमनन्यमानसा,
    तपोधनं वेत्सि न मामुपस्थितम्।"
    इस पद्यांश में छन्द है -
    स्पष्टीकरण -
    • इस पद्यांश में वंशस्थ छन्द है
    वंशस्थ छन्द -
    • यह बारह वर्णों का समवृत्त छन्द है। वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (12 x 4 = 48) अड़तालीस वर्ण होते है। इसमें 12 वर्ण पर अर्थात् चरण के अन्त में यति होती है।

     conclusion

    • लक्षण - ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ'
    • जतौ - जगण तथा तगण, जरौ - जगण और रगण, तु - तो, वशंस्थम् उदीरितम् - वंशस्थ कहा गया है। 
    • यहाँ प्रत्येक चरण में जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।) और रगण (ऽ।ऽ) होते हैं। अर्थात् क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण-इन चार गणों को वंशस्थ कहते है।

    उदाहरण -
    ।  ऽ  । ऽ  ऽ ।।ऽ  । ऽ।  ऽ
    विचिन्तयन्ती यमनन्यमानसा
    ।  ऽ। ऽ ऽ । ।  ऽ । ऽ  । ऽ
    तपोधनं वेत्सि न मामुपस्थितम् ।
      । ऽ ।  ऽ  ऽ ।  ।  ऽ । ऽ   ।  ऽ
    स्मरिष्यति त्वां न स बोधितोऽपि सन्
    ।   ऽ । ऽ ऽ ।।ऽ ।  ऽ । ऽ
    कथां प्रमत्तः प्रथमं कृतामिव ॥

    अत: 'वंशस्थम्' विकल्प सही है। 

    Additional Information

    अन्य विकल्प -
    1.अनुष्टुप् -

    • अनुष्टुप में चार पद होते है।
    • अनुष्टुप छन्द संस्कृत काव्य में सर्वाधिक प्रयुक्त होता है।
    • रामायण, महाभारत तथा गीता के अधिकांश श्लोक अनुष्टुप छन्द में ही हैं।

    लक्षण -
    श्लोके षष्ठं गुरुर्ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम् । 
    द्विचतुः पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥

    • अर्थात् प्रत्येक पद में आठ अक्षर या वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद/चरण का छठा अक्षर/वर्ण गुरु होता है और पंचम अक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पद का सातवाँ अक्षर गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पद का सप्तम अक्षर लघु होता है। इस प्रकार पदों में सप्तम अक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है, अर्थात् प्रथम पद में गुरु, द्वितीय पद में लघु, तृतीय पद में गुरु और चतुर्थ पद में लघु।

    2.वियोगिनी -

    • इसके सम चरण में 11 -11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते है।
    • विषम चरणों में दो सगण, एक जगण, एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते है।

    3.पुष्पिताग्रा -

    • पुष्पिताग्रा के पहले एवं तीसरे चरण में दो नगण, एक रगण, और एक यगण होता है।
    • दूसरे और चौथे चरण में एक नगण, दो जगण, एक रगण तथा एक गुरु होता है।
  • Question 10/10
    5 / -1

    'उदेति पूर्वं कुसमं ततः फलम्।' उपर्युक्तचरणे छन्दस: नाम अस्ति
    Solutions

    प्रश्न अनुवाद - 'उदेति पूर्व कुसमं ततः फलम्।' उपर्युक्त चरण में छन्द का नाम है ?
    स्पष्टीकरण -

    • यह बारह वर्णों का समवृत्त छन्द है। वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते है।
    • अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (12 x 4 - 48) अड़तालीस वर्ण होते है। 
    • इसमें 12 वर्ण पर अर्थात् चरण के अन्त में यति होती है।

     conclusion

    • लक्षण - ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ'
    • जतौ - जगण तथा तगण, जरौ - जगण और रगण, तु - तो, वशंस्थम् उदीरितम् - वंशस्थ कहा गया है। यहाँ प्रत्येक चरण में जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।) और रगण (ऽ।ऽ) होते है। 
    • अर्थात् क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण-इन चार गणों को वंशस्थ कहते है।

    उदाहरण -
    । ऽ । ऽ ऽ । । ऽ ।ऽ  ।  ऽ
    उदेति पूर्वं कुसमं ततः फलम्  (12 वर्ण, चरण के अन्त में यति)
    धनोदयः प्राक्तदनन्तरं पयः ।
    निमित्तनैमित्तिकयोरयं क्रमस्तव 
    प्रसादस्य पुरस्तु सम्पदः ॥

    अत: 'वंशस्थ' विकल्प सही है। 

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